पिछले कुछ वर्षों में भारत में कई छोटे और मध्यम उद्यम (SME) ने कैपिटल जुटाने के लिए IPO का रुख किया है। बड़े कॉर्पोरेट्स के आईपीओ के विपरीत, SME IPO खासतौर पर छोटे व्यवसायों के लिए बनाए गए हैं ताकि वे अपने भविष्य के प्लान और विकास के लिए फंड जुटा सकें।
ये IPO SME को कैपिटल, विश्वसनीयता और बाजार में पहचान पाने का एक बेहतरीन मौका देते हैं। आइए जानते है कि SME IPO क्या है, यह क्यों जरूरी है, और कंपनियों व निवेशकों के लिए इसका क्या महत्व है।
एसएमई आईपीओ क्या होता है?
SME IPO एक ऐसा IPO है जो छोटे और मध्यम स्तर के व्यवसायों के लिए होता है, जिसमें ये कंपनियां शेयर जारी करके जनता से फंड जुटाती हैं। इसके तहत SME कंपनियां अपने शेयरों को शेयर बाजार में लिस्ट करवाती हैं ताकि वे फंड जुटा सकें और अपने बिजनेस को आगे बढ़ा सकें।
भारत में, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने SME लिस्टिंग के लिए दो खास प्लेटफॉर्म बनाए हैं – BSE SME और NSE Emerge, जो छोटे व्यवसायों के लिए शेयर बाजार में लिस्टिंग की प्रक्रिया को आसान बनाते हैं। इस प्रकार की लिस्टिंग का उद्देश्य SME को कम नियमों के तहत शेयर बाजार में प्रवेश की अनुमति देना है ताकि वे भी कैपिटल जुटा सकें और बड़े व्यवसायों की तरह ग्रोथ कर सकें।
एसएमई-आईपीओ से कंपनियां फंड जुटाकर अपने प्रोडक्ट्स का विकास, टेक्नोलॉजी में सुधार और नए मार्केट्स में विस्तार कर सकती हैं। यह उन्हें प्रतिस्पर्धा में बने रहने और तेजी से ग्रोथ करने में मदद करता है।
एसएमई आईपीओ के लिए पात्रता मानदंड
SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) ने SME IPO के लिए आईपीओ के नियमों में कुछ छूट दी है, ताकि SME कंपनियां आसानी से शेयर मार्केट में लिस्ट हो सकें। SME IPO जारी करने वाली कंपनी की इश्यू के बाद की पैड अप कैपिटल 25 करोड़ रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा, SME IPO कंपनी के निदेशकों, प्रमोटरों और निवेशकों के लिए सामान्य IPO की तरह ही पात्रता मानदंड होते हैं – इनमें यह अनिवार्य है कि वे कैपिटल मार्केट तक पहुंच के लिए किसी भी तरह से अयोग्य, दोषी या डिफॉल्टर न हों।
इसके अलावा, SME IPO को अन्य पात्रता मानदंड भी पूरे करने होते हैं, जो एक्सचेंजों द्वारा तय किए गए हैं। जिन्हें यहां विस्तार से समझाया गया है।
बीएसई एसएमई आईपीओ पात्रता मानदंड
यदि कोई SME कंपनी BSE के SME प्लेटफॉर्म पर IPO जारी करना चाहती है, तो उसे निम्नलिखित पात्रता मानदंड पूरे करने होते हैं:
- कंपनी की नेटवर्थ पिछले दो वित्तीय वर्षों में कम से कम 1 करोड़ रुपये होनी चाहिए। अगर कंपनी को किसी पार्टनरशिप फर्म, प्रोपराइटरशिप या LLP (लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप) से बदलकर बनाया गया है, तो पिछली फर्म के पास पिछले दो वित्तीय वर्षों के दौरान कम से कम 1 करोड़ रुपये की नेटवर्थ होनी चाहिए।
- कंपनी के नेट टेंजेबल एसेट्स (जैसे जमीन, मशीनरी आदि) पिछले वित्तीय वर्ष में कम से कम 3 करोड़ रुपये होने चाहिए।
- कंपनी के पास कम से कम तीन साल का संचालन (ऑपरेशन) का रिकॉर्ड होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है, तो जिस प्रोजेक्ट के लिए IPO प्रस्तावित किया जा रहा है, उसे NABARD, SIDBI, बैंकों (सहकारी बैंकों को छोड़कर) या अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा मूल्यांकन और वित्तपोषण किया जाना चाहिए।
- कंपनी ने पिछले तीन में से कम से कम दो वित्तीय वर्षों में ऑपरेटिंग प्रॉफिट (यानी ब्याज, डिप्रीशिएशन और टैक्स से पहले की इनकम) होना चाहिए, और नवीनतम वित्तीय वर्ष में अनिवार्य रूप से मुनाफा होना चाहिए। अगर IPO प्रोजेक्ट का वित्तपोषण NABARD, SIDBI या बैंकों (सहकारी बैंकों को छोड़कर) द्वारा किया गया है, तो कंपनी का पिछले वित्तीय वर्ष में सकारात्मक ऑपरेटिंग प्रॉफिट होना चाहिए।
- कंपनी का लेवरेज अनुपात 3:1 से अधिक नहीं होना चाहिए। फाइनेंशियल कंपनियों को कुछ छूट मिल सकती है।
- किसी भी प्रमोटर या प्रमोटरों द्वारा प्रवर्तित कंपनियों के विरुद्ध व्यापार निलंबन की कोई नियामक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।
- कंपनी के डायरेक्टर और प्रमोटर ऐसी किसी कंपनी के प्रमोटर या डायरेक्टर नहीं होने चाहिए, जिन्हें गैर-अनुपालन के कारण ट्रेडिंग से निलंबित किया गया हो या अनिवार्य रूप से डीलिस्ट कर दिया गया हो।
- कंपनी का कोई भी डायरेक्टर किसी भी नियामक प्राधिकरण द्वारा अयोग्य घोषित या प्रतिबंधित नहीं होना चाहिए।
- कंपनी, प्रमोटर, प्रमोटिंग कंपनियों या सहायक कंपनियों द्वारा डिबेंचर/बॉन्ड/फिक्स्ड डिपॉजिट धारकों को ब्याज या मूलधन के भुगतान में कोई बकाया नहीं होना चाहिए।
- यदि कंपनी ने पिछले एक वर्ष में नाम बदला है, तो पिछले वित्तीय वर्ष के कुल राजस्व का 50% नई गतिविधि से अर्जित होना चाहिए, जिसे नाम से दर्शाया गया है। इस राजस्व की गणना पुनः बयान और समेकित आधार पर की जानी चाहिए।
- कंपनी के पास एक वेबसाइट होनी चाहिए।
- कंपनी का CDSL और NSDL दोनों भारतीय डिपॉजिटरीज़ के साथ एग्रीमेंट होना चाहिए।
- कंपनी को अपने शेयरों की डिमैट फॉर्म में ट्रेडिंग की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।
- SME सेगमेंट के अंतर्गत BSE पर लिस्टेड होने के लिए आवेदन की तारीख से पिछले एक साल में प्रमोटरों की लिस्ट में कोई भी बदलाव नहीं होना चाहिए।
- कंपनी को BSE को एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होता है जिसमें कहा गया हो कि कंपनी वर्तमान में औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (BIFR) के अंतर्गत नहीं है और न ही कंपनी के खिलाफ लिक्विडेशन (वाइंडिंग अप) के लिए कोई याचिका दायर की गई है।
ब्रोकिंग कंपनियों के लिए अतिरिक्त पात्रता मानदंड
नेटवर्थ & प्रॉफिट: | – पिछले 3 वित्तीय वर्षों में से किसी भी 2 साल में न्यूनतम 5 करोड़ रुपये होना चाहिए। – या पिछले 5 वित्तीय वर्षों में से किसी भी 3 साल में नेट वर्थ कम से कम 25 करोड़ रुपये होनी चाहिए। |
नेट टेंजेबल एसेट्स: | कंपनी की नवीनतम ऑडिटेड वित्तीय रिपोर्ट के अनुसार कम से कम 3 करोड़ रुपये होने चाहिए। |
पोस्ट-इश्यू पेड-अप कैपिटल: | इश्यू के बाद कंपनी की पैड अप कैपिटल 3 करोड़ रुपये होनी चाहिए। |
माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के लिए अतिरिक्त पात्रता मानदंड
एसेट अंडर मैनेजमेंट: | 100 करोड़ रुपए + |
क्लाइंट बेस: | 10,000 + |
एनएसई एसएमई आईपीओ पात्रता मानदंड
NSE Emerge प्लेटफॉर्म पर SME IPO जारी करने के लिए कंपनी को निम्नलिखित पात्रता मानदंड पूरे करने होते हैं:
- कंपनियों का भारत में कंपनी अधिनियम 1956/2013 के तहत पंजीकरण होना चाहिए।
- कंपनी का कम से कम तीन वर्षों का संचालन का रिकॉर्ड (ट्रैक रिकॉर्ड) होना चाहिए।
- इश्यू के बाद, प्रमोटर्स के पास व्यक्तिगत या संयुक्त रूप से कम से कम 20% शेयर कैपिटल होनी चाहिए।
- प्रमोटरों में से किसी एक के पास उसी इंडस्ट्री में कम से कम तीन साल का अनुभव होना चाहिए।
- कंपनी के पास पिछले तीन वित्तीय वर्षों में से कम से कम 2 वर्षों में ऑपरेटिंग प्रॉफिट और सकारात्मक नेट वर्थ होनी चाहिए।
- कंपनी या प्रमोटरों के खिलाफ बोर्ड फॉर इंडस्ट्रियल एंड फाइनेंशियल रिकंस्ट्रक्शन (BIFR), दिवालियापन या दिवालियापन से संबंधित कोई भी लंबित मामला नहीं होना चाहिए।
- कंपनी के खिलाफ NCLT/कोर्ट से किसी भी तरह का विंडिंग-अप (समापन) का अनुरोध नहीं होना चाहिए।
- पिछले तीन वर्षों में किसी भी स्टॉक एक्सचेंज या नियामक एजेंसी द्वारा कंपनी के खिलाफ कोई महत्वपूर्ण नियामक या अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
SME IPO के मुख्य लाभ क्या है?
SME IPOs के प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
- SME कंपनियां अपने बिजनेस के विस्तार और विकास के लिए IPO के माध्यम से कैपिटल जुटा सकती हैं, जिससे उनके पास नए प्रोजेक्ट्स और वर्किंग कैपिटल के लिए धन उपलब्ध होता है।
- SME IPO लाने से कंपनी की ब्रांड वैल्यू और पहचान में वृद्धि होती है, जिससे बाजार में उसकी साख और ग्राहकों का विश्वास बढ़ता है।
- IPO प्रक्रिया के दौरान कंपनियों को विभिन्न नियमों का पालन करना होता है, जिससे उनकी कॉर्पोरेट गवर्नेंस बेहतर होती है और पारदर्शिता बढ़ती है।
- एक बार लिस्ट होने के बाद, भविष्य में कंपनी के लिए कैपिटल जुटाना आसान हो जाता है, क्योंकि कंपनी का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर दिखता है और निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।
- IPO के बाद कंपनी अपने कर्मचारियों को स्टॉक विकल्प (ESOPs) दे सकती है, जिससे कर्मचारियों का कंपनी के प्रति जुड़ाव और प्रेरणा बढ़ती है।
- SME कंपनियों को सार्वजनिक रूप से लिस्ट होने का मौका मिलता है, जिससे उनकी पहुंच नए निवेशकों तक होती है और उनकी इक्विटी शेयर बाजार में ट्रेड हो सकती है।
SME IPO के जोखिम तथा नुकसान
- SME IPOs में liquidity अक्सर कम होती है, जिससे शेयरों को बेचना मुश्किल हो सकता है। इसके कारण निवेशकों को अपने शेयरों को जल्दी या उचित मूल्य पर बेचने में परेशानी हो सकती है।
- SME कंपनियां आमतौर पर विकास के शुरुआती चरण में होती हैं, जिनमें बड़ी कंपनियों की तुलना में वृद्धि की गति और भविष्य की सफलता अनिश्चित होती है। यह निवेशकों के लिए जोखिम पैदा कर सकता है।
- SME कंपनियों के पास बड़ी कंपनियों की तुलना में कम वित्तीय पारदर्शिता होती है, जिससे निवेशकों को कंपनी की वित्तीय स्थिति और भविष्य की योजना को सही से समझना कठिन हो सकता है।
- छोटे और मध्यवर्गीय व्यवसाय अधिकतर अस्थिर होते हैं और मार्केट के उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं, जो निवेशकों को भारी नुकसान में डाल सकता है।
- SME कंपनियों का ट्रैक रिकॉर्ड अक्सर छोटा और सीमित होता है, जिससे निवेशकों के लिए कंपनी के भविष्य का मूल्यांकन करना कठिन हो सकता है।
- SME IPOs की कीमत निर्धारण प्रक्रिया कभी-कभी ठीक से नहीं होती, जिससे निवेशक अपेक्षाकृत अधिक कीमत पर शेयर खरीद सकते हैं। यह बाद में शेयर की कीमतों में गिरावट का कारण बन सकता है।
एसएमई आईपीओ vs मेनबोर्ड आईपीओ
हालांकि दोनों IPO हैं, लेकिन SME IPO और मेनबोर्ड IPO में कुछ मुख्य अंतर इस प्रकार हैं:
लिस्टिंग पैरामीटर | मेनबोर्ड आईपीओ | एसएमई आईपीओ |
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पोस्ट-इश्यू पेड-अप कैपिटल | कम से कम ₹10 करोड़ की आवश्यकता | ₹1 करोड़ से ₹25 करोड़ के बीच |
ऑफर डॉक्युमेंट की रिव्यू | SEBI द्वारा | एक्सचेंज द्वारा |
आईपीओ टाइमफ्रेम | 6 महीने या उससे अधिक | 3 से 4 महीने |
IPO अंडरराइटिंग | अनिवार्य नहीं | अनिवार्य: मर्चेंट बैंकर 100% जोखिम को अंडरराइट करता है, कंपनी 15% अंडरराइटिंग करती है |
QIBs (Qualified Institutional Buyers) का भागीदारी | 50% QIB द्वारा अनिवार्य रूप से सब्सक्रिप्शन | अनिवार्य नहीं |
लिस्टिंग | दोनों एक्सचेंजों पर लिस्ट हो सकता है | केवल एक एक्सचेंज पर लिस्ट हो सकता है |
टारगेट कंपनियाँ | बड़े कॉर्पोरेट्स | छोटे और मीडियम उद्यम (SMEs) |
लिस्टिंग प्लेटफार्म | BSE, NSE | BSE SME, NSE Emerge |
निवेशक आधार | सामान्य जनता, संस्थागत निवेशक | मुख्य रूप से उच्च-नेट-वर्थ वाले व्यक्तियों (HNIs) |