आईपीओ (IPO) यानी इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग का मतलब है कि एक निजी कंपनी अपने शेयर पहली बार जनता को बेचने के लिए बाजार में उतार रही है। यह कंपनी के लिए पैसा जुटाने का एक तरीका होता है और निवेशकों को कंपनी के विकास में हिस्सा लेने का मौका देता है।
भारत में आईपीओ मुख्यतः दो तरह के होते हैं – मेनबोर्ड आईपीओ और एसएमई (SME) आईपीओ। इस लेख में हम समझेंगे कि मेनबोर्ड आईपीओ क्या है, और यह अन्य आईपीओ से कैसे अलग होता है।
मैनलाइन आईपीओ या मेनबोर्ड आईपीओ क्या है?
मेनबोर्ड आईपीओ वो आईपीओ होता है जो भारत के बड़े शेयर बाजारों जैसे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) पर लिस्ट होता है। यह आईपीओ उन बड़ी, स्थिर और स्थापित कंपनियों के लिए होता है, जिनका बिजनेस लंबे समय से चल रहा है और जिनके पास पर्याप्त कैपिटल होती है।
मेनबोर्ड आईपीओ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के कड़े नियमों और मानकों का पालन करना होता है। इन मानकों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल उन कंपनियों को मेनबोर्ड आईपीओ की अनुमति दी जाए जो निवेशकों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर काम कर रही हों और जिनकी फाइनेंशियल स्थिति स्थिर हो।
मेनबोर्ड आईपीओ के लिए पात्रता मानदंड
मेनबोर्ड आईपीओ की पात्रता मानदंड भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के ICDR (Issue of Capital and Disclosure Requirements) रेगुलेशन 2018 के तहत निर्धारित किए गए हैं।
SEBI के अनुसार मेनबोर्ड आईपीओ पात्रता मानदंड
SEBI ने कंपनियों के लिए आईपीओ जारी करने हेतु दो रूट निर्धारित किए हैं, जो इस प्रकार है:
प्रोफिटेबिलिटी रूट या एंट्री नॉर्म I
प्रोफिटेबिलिटी रूट (एंट्री नॉर्म I) के तहत, कंपनी को कुछ Financial Standards का पालन करना होता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कंपनी फाइनेंशियल रूप से स्थिर है। इस रूट से आईपीओ जारी करने के लिए, कंपनी को निम्नलिखित शर्तें पूरी करनी होती हैं:
- पिछले तीन सालों में कंपनी के नेट टेंजेबल एसेट्स कम से कम 3 करोड़ रुपये होने चाहिए।
- फ्रेश इश्यू (OFS नहीं) के लिए, कैश या कैश के समकक्ष टेंजेबल एसेट्स 50% से कम होनी चाहिए।
- पिछले पांच सालों में से किसी भी तीन सालों में कंपनी का औसत ऑपरेटिंग प्रॉफिट (टैक्स से पहले) कम से कम 15 करोड़ रुपये होना चाहिए।
- यदि कंपनी का नाम बदल गया है, तो पिछले वर्ष में 50% राजस्व उसी बिजनेस से होना चाहिए जो नए नाम के तहत किया जा रहा हो।
- कंपनी के आईपीओ का साइज आईपीओ से पहले की कंपनी की नेट वर्थ का पांच गुना से अधिक नहीं होना चाहिए।
QIB रूट या एंट्री नॉर्म II
QIB रूट एक वैकल्पिक तरीका है, जिसे SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) ने उन कंपनियों के लिए बनाया है जो प्रॉफिटेबिलिटी के सख्त स्टैंडर्ड को पूरा नहीं कर पातीं है, लेकिन जो फिर भी अच्छी और भरोसेमंद कंपनियां हैं।
- कंपनी को अपना आईपीओ बुक-बिल्डिंग प्रक्रिया के माध्यम से लाना होता है। इसका मतलब है कि आईपीओ की कीमत बाजार में मांग और सप्लाई के आधार पर तय होती है।
- कंपनियों को आईपीओ का कम से कम 75% हिस्सा क्वालीफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स (QIBs), यानी संस्थागत निवेशकों को आवंटित करना होता है। QIBs में बड़े वित्तीय संस्थान जैसे म्यूचुअल फंड, बैंक, बीमा कंपनियाँ शामिल होती हैं।
- अगर आईपीओ में न्यूनतम आवंटन की आवश्यकता पूरी नहीं होती, तो कंपनी को निवेशकों की सब्सक्रिप्शन राशि वापस करनी होगी।
NSE आईपीओ पात्रता मानदंड
SEBI के आईपीओ दिशानिर्देशों के साथ-साथ, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने भी कंपनियों के लिए कुछ अतिरिक्त पात्रता मानदंड निर्धारित किए हैं, जिनका पालन करना जरूरी है। ये मानदंड निम्नलिखित हैं:
- कम से कम एक प्रमोटर के पास उसी इंडस्ट्री में कम से कम 3 साल का अनुभव होना चाहिए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कंपनी के प्रमोटर इंडस्ट्री को अच्छे से समझते हों और कंपनी को सफलतापूर्वक संचालित कर सकें।
- कंपनी को पिछले तीन वित्तीय वर्षों की वार्षिक रिपोर्टें NSE में जमा करनी होती हैं। इससे एक्सचेंज को कंपनी की वित्तीय स्थिति का विश्लेषण करने में मदद मिलती है।
- कंपनी की नेटवर्थ सकारात्मक होनी चाहिए। यह शर्त उन कंपनियों पर लागू होती है जिनके आईपीओ का साइज 500 करोड़ रुपये से कम है।
- आईपीओ के बाद कंपनी की पेड-अप इक्विटी 10 करोड़ रुपये से अधिक होनी चाहिए।
- कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन 25 करोड़ रुपये से अधिक होना चाहिए।
- कंपनी को एक्सचेंज को एक प्रमाण पत्र देना होता है जो निम्नलिखित बिंदुओं की पुष्टि करता है:
- इंसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कानून के तहत कोई मामला नहीं होना चाहिए।
- कंपनी के खिलाफ नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) से कोई विंडिंग-अप याचिका प्राप्त नहीं हुई होनी चाहिए।
BSE आईपीओ पात्रता मानदंड
BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) पर आईपीओ लाने के लिए कंपनियों को कुछ विशेष पात्रता मानदंड पूरे करने होते हैं। NSE और BSE दोनों के लिए इक्विटी और मार्केट कैपिटलाइजेशन की आवश्यकताएँ समान हैं। BSE के अनुसार, कंपनी को निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना होगा:
- आईपीओ के बाद, कंपनी की पेड-अप कैपिटल कम से कम 10 करोड़ रुपये होनी चाहिए।
- कंपनी का आईपीओ साइज कम से कम 10 करोड़ रुपये का होना चाहिए।
- कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन कम से कम 25 करोड़ रुपये होना चाहिए।
अन्य आईपीओ पात्रता मानदंड
- यदि कंपनी अपने ऑफर फॉर सेल या प्रॉस्पेक्टस डॉक्यूमेंट्स में BSE का नाम उपयोग करना चाहती है, तो इसके लिए उसे पहले BSE से सहमति प्राप्त करनी होती है।
- कंपनी को एक या अधिक स्टॉक एक्सचेंज के साथ आवेदन करना होता है और उन एक्सचेंजों में से एक को अपनी पसंदीदा एक्सचेंज के रूप में चुनना होता है।
- कंपनी को एक डिपॉजिटरी (जैसे CDSL और NSDL) के साथ एग्रीमेंट करना होता है, ताकि आईपीओ से पहले और बाद में शेयरों का डिमटेरियलाइजेशन (इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखना) हो सके।
- प्रमोटर्स को अपने शेयरों को DRHP (ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस) फाइल करने से पहले डिमैट (इलेक्ट्रॉनिक) फॉर्म में रखना होता है।
- आईपीओ जारी करने से पहले, कंपनी को चुने गए स्टॉक एक्सचेंज में कुल आईपीओ राशि का 1% जमा करना होता है।
मेनबोर्ड आईपीओ के लाभ
मेनबोर्ड आईपीओ (Mainboard IPO) के कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
- मेनबोर्ड आईपीओ के माध्यम से कंपनियाँ बड़ी राशि जुटा सकती हैं, जो उन्हें अपने बिजनेस का विस्तार करने, लोन चुकाने, और नए प्रोजेक्ट्स में निवेश करने में मदद करता है।
- मेनबोर्ड पर लिस्ट होने से कंपनी की प्रतिष्ठा बढ़ती है। निवेशक और बाजार इसे एक मजबूत और स्थिर कंपनी के रूप में देखते हैं, जिससे कंपनी की विश्वसनीयता में वृद्धि होती है।
- मेनबोर्ड आईपीओ के बाद कंपनी के शेयर NSE या BSE जैसे प्रमुख एक्सचेंज पर लिस्ट होते हैं, जिससे निवेशकों को अपने शेयर आसानी से खरीदने और बेचने की सुविधा मिलती है।
- एक बार मेनबोर्ड पर लिस्ट होने के बाद, कंपनी के लिए भविष्य में अतिरिक्त कैपिटल जुटाना आसान हो जाता है, क्योंकि निवेशकों का भरोसा पहले से बना रहता है।
- मेनबोर्ड आईपीओ के माध्यम से कंपनियाँ बड़े और संस्थागत निवेशकों का ध्यान आकर्षित कर सकती हैं, जो उनके बिजनेस में लंबे समय तक निवेश करते हैं।
- मेनबोर्ड पर लिस्ट कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को स्टॉक ऑप्शन दे सकती हैं, जिससे कर्मचारियों का कंपनी के साथ जुड़ाव बढ़ता है और वे कंपनी की ग्रोथ में योगदान करते हैं।
- मेनबोर्ड पर लिस्ट होने के बाद कंपनियों को SEBI के नियमों का पालन करना होता है, जिससे उनके मैनेजमेंट में अनुशासन आता है और संचालन में पारदर्शिता बढ़ती है।
मेनबोर्ड आईपीओ में निवेश करते समय ध्यान देने योग्य बातें
मेनबोर्ड आईपीओ में निवेश के अच्छे अवसर होते हैं, लेकिन इसके साथ कुछ जोखिम भी जुड़े होते हैं:
- निवेश करने से पहले कंपनी की वित्तीय स्थिति, मैनेजमेंट की क्षमता और भविष्य की योजनाओं का विश्लेषण करें।
- कंपनी आईपीओ के माध्यम से जुटाई गई राशि का उपयोग कैसे करेगी, इसे समझना आवश्यक है। क्या यह विकास के लिए है या लोन चुकाने के लिए?
- कंपनी के आईपीओ की वैल्यूएशन को देखें और जानें कि क्या शेयर का प्राइस वास्तविक है या अधिक वैल्यूएशन पर किया गया है।
- जिस सेक्टर में कंपनी है, उसकी स्थिति और संभावनाओं को भी ध्यान में रखें। इसके अलावा, वर्तमान आर्थिक स्थिति को भी समझें, क्योंकि इससे कंपनी पर असर पड़ सकता है।