आईपीओ वैल्यूएशन क्या है और इसकी गणना कैसे की जाती है?

आईपीओ वैल्यूएशन का मतलब है कि किसी कंपनी की सही बाजार कीमत का आकलन करना, जब वह पहली बार अपने शेयर आम जनता को बेचती है। भारत में आईपीओ वैल्यूएशन कंपनी के शेयरों की कीमत तय करने और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए बेहद जरूरी है। सही वैल्यूएशन यह सुनिश्चित करता है कि कंपनी अपने फंड रेजिंग गोल को सफलतापूर्वक पूरा कर सके।

इस लेख में हम समझेंगे कि आईपीओ वैल्यूएशन क्यों जरूरी है, इसे कैसे किया जाता है, और भारत के शेयर बाजार में इसके मुख्य पहलू क्या हैं?

आईपीओ वैल्यूएशन क्या है?

आईपीओ वैल्यूएशन एक प्रक्रिया है, जिसमें कंपनी का उचित मूल्य तय किया जाता है ताकि आईपीओ की सही कीमत निर्धारित की जा सके। कंपनी के आईपीओ वैल्यूएशन को प्रभावित करने वाले कई कारक होते हैं। मर्चेंट बैंकर इन सभी कारकों का गहराई से विश्लेषण करता है। इस डेटा को आईपीओ ड्राफ्ट प्रॉस्पेक्टस के रूप में सेबी (SEBI) को सौंपा जाता है, जिसमें कीमत तय करने का आधार समझाया गया होता है। SEBI इस डेटा का पूरी तरह मूल्यांकन और विश्लेषण करती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निवेशकों का पैसा सुरक्षित रहे।

आईपीओ की सफलता के लिए शेयर की सही कीमत बेहद महत्वपूर्ण है।

  • ओवरवैल्यूड स्टॉक: अगर स्टॉक की कीमत बहुत ज्यादा होती है, तो यह निवेशकों को आकर्षित नहीं कर पाता।
  • अंडरवैल्यूड स्टॉक: अगर स्टॉक की कीमत बहुत कम होती है, तो यह निवेशकों के बीच संदेह पैदा कर सकता है।

इसलिए, सही वैल्यूएशन कंपनी और निवेशकों दोनों के लिए फायदेमंद होता है।

आईपीओ वैल्यूएशन को प्रभावित करने वाले कारक

आईपीओ का वैल्यूएशन मुख्य रूप से कंपनी की हेल्थ और प्रदर्शन पर आधारित होता है। इसके अलावा, कई अन्य कारक जैसे इंडस्ट्री की स्थिति और मार्केट की परिस्थितियां भी वैल्यूएशन को प्रभावित करती हैं। कंपनी की वैल्यूएशन को प्रभावित करने वाले कई कारक होते हैं, जो इस प्रकार हैं:

मांग (Demand)

आमतौर पर, अगर किसी शेयर की मांग ज्यादा होती है, तो उसकी कीमत भी ज्यादा होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि निवेशक उस कंपनी में निवेश करने के लिए अधिक कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं। हालांकि, निवेशकों को यह समझना चाहिए कि केवल मांग के आधार पर आईपीओ का सही वैल्यूएशन नहीं किया जा सकता। यह कई बार भ्रामक साबित हो सकता है।

उदाहरण के लिए, Paytm और LIC के आईपीओ की मांग काफी ज्यादा थी और उम्मीद थी कि ये ज्यादा प्रीमियम पर लिस्ट होंगे। लेकिन दोनों ही स्टॉक 8-9% के डिस्काउंट पर लिस्ट हुए, जिससे निवेशकों को नुकसान हुआ। इसलिए, निवेशकों को मांग के साथ अन्य कारकों पर भी ध्यान देना चाहिए।

पिछले वित्तीय प्रदर्शन (Past Financial Performance)

किसी कंपनी का वित्तीय रिकॉर्ड उसकी वैल्यूएशन में अहम भूमिका निभाता है। आईपीओ की कीमत तय करने के लिए जिन प्रमुख वित्तीय कारकों का विश्लेषण किया जाता है, वे इस प्रकार हैं:

  • संपत्तियां (Assets)
  • लायबिलिटीज
  • रेवेन्यू उत्पन्न करने की क्षमता (Ability to generate revenue)
  • अर्निंग पर शेयर (EPS)
  • प्राइस-टू-अर्निंग्स रेश्यो (P/E Ratio)
  • रिटर्न ऑन नेटवर्थ
  • Net Asset Value per Share

इन सभी वित्तीय आंकड़ों का सही तरीके से आकलन करना आईपीओ की कीमत तय करने का आधार बनता है।

उत्पाद और सेवाएं

किसी कंपनी के उत्पाद और सेवाएं भी उसकी वैल्यूएशन को प्रभावित करती हैं। अगर कंपनी ऐसे उत्पाद या सेवाएं प्रदान करती है जो आम लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाती हैं या जिन्हें आवश्यकता (Necessities) माना जाता है, तो उस कंपनी का आईपीओ अधिक कीमत पर आ सकता है।

उदाहरण के तौर पर, दवाइयों, खाद्य पदार्थों, या डिजिटल पेमेंट जैसी सेवाएं, जो रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करती हैं, निवेशकों को आकर्षित करने में अधिक सक्षम होती हैं।

कंपनी का मैनेजमेंट और वैल्यूज

अनुभवी मैनेजमेंट, मजबूत प्रमोटर, और अच्छी कॉर्पोरेट छवि वाली कंपनियां आमतौर पर हाई वैल्यूएशन प्राप्त करती हैं। ऐसी कंपनियों का आईपीओ निवेशकों को अधिक आकर्षित करता है, जिससे इसकी कीमत भी अधिक हो सकती है। सही लीडरशिप और सकारात्मक वैल्यू सिस्टम कंपनी की सफलता और निवेशकों के विश्वास में बड़ा योगदान देते हैं।

आईपीओ का समय और मार्केट ट्रेंड

मार्केट ट्रेंड और समय भी कंपनी की वैल्यूएशन को प्रभावित करते हैं। अगर बाजार मंदी (डाउनट्रेंड) में है, तो हाई वैल्यूएशन भी निवेशकों को आकर्षित नहीं कर पाएगी। इसलिए, कंपनी को आईपीओ लांच करने का सही समय चुनना जरूरी होता है, ताकि वह बाजार की स्थिति और निवेशकों की रुचि के अनुरूप वैल्यू प्राप्त कर सके।

पीयर कंपेरिजन

आईपीओ कंपनी की वैल्यूएशन आमतौर पर उसी इंडस्ट्री की कंपनियों के साथ मिलाकर की जाती है। इसलिए, एक आईपीओ जारी करने वाली कंपनी अपने इंडस्ट्री में समान कंपनियों की वैल्यूएशन और वर्तमान बाजार कीमतों का अध्ययन करती है।

अगर वैल्यूएशन में बहुत अंतर होता है, तो निवेशक कंपनी में निवेश करने से हिचकिचाते हैं। निवेशकों को यह समझने में मदद मिलती है कि कंपनी का वैल्यूएशन उस इंडस्ट्री के बाकी कंपनियों से उचित और समान है या नहीं।

संभावित ग्रोथ रेट

निवेशक उन कंपनियों को आकर्षित होते हैं जिनके भविष्य में अच्छे विकास के अवसर होते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई कंपनी अपने व्यापार के विस्तार के लिए फंड जुटाने का इरादा रखती है, तो उसे उस कंपनी की तुलना में अधिक मूल्य मिल सकता है, जिसका मुख्य उद्देश्य कर्ज चुकाना हो।

इसलिए, कंपनियों का भविष्य और विकास की योजना उनकी वैल्यूएशन को प्रभावित करती है।

आईपीओ वैल्यूएशन प्रक्रिया

आईपीओ वैल्यूएशन एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है, जो प्रशिक्षित मर्चेंट बैंकरों द्वारा की जाती है। मर्चेंट बैंकरों के पास आईपीओ वैल्यूएशन को प्रभावित करने वाले सभी फैक्टर्स को समझने और एनालाइज करने की एक्सपर्टिज और ज्ञान होता है। किसी कंपनी की वैल्यूएशन निकालने के लिए, मर्चेंट बैंकर को निम्नलिखित कदम उठाने होते हैं:

  • कंपनी का सभी पिछला डेटा और जानकारी इकट्ठा करना, जिसमे कंपनी की वित्तीय जानकारी भी शामिल होती है।
  • इकट्ठा किए गए डेटा को गहराई से एनालाइज करना।
  • डेटा का ऑडिट करना
  • प्रतिस्पर्धी कंपनियों की वैल्यूएशन का अध्ययन करना
  • सभी प्रभावी फैक्टर्स को एनालाइज करना
  • वैल्यूएशन निकालने के लिए एक या अधिक वैल्यूएशन विधियों का उपयोग करना
  • सारी जानकारी को आईपीओ ड्राफ्ट डॉक्यूमेंट में डालना
  • SEBI को एनालाइज और अप्रूवल के लिए डेटा भेजना

यह पूरी प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि आईपीओ वैल्यूएशन सही तरीके से की जाए, ताकि निवेशकों का पैसा सुरक्षित रहे और कंपनी उचित कीमत पर निवेश प्राप्त कर सके।

आईपीओ वैल्यूएशन की विधियाँ

आईपीओ वैल्यूएशन के लिए कई वैल्यूएशन विधियाँ उपलब्ध होती हैं। एक मर्चेंट बैंकर किसी एक या एक से अधिक वैल्यूएशन विधियों का उपयोग करके उचित वैल्यूएशन तय कर सकता है। आइए जानते हैं कुछ मुख्य विधियाँ जो कंपनियाँ अपने स्टॉक की कीमत तय करने के लिए उपयोग करती हैं:

रिलेटिव वैल्यूएशन विधि

रिलेटिव वैल्यूएशन को कंपेरेबल वैल्यूएशन विधि या मल्टीपल्स का उपयोग करके आईपीओ वैल्यूएशन भी कहा जाता है। इस विधि में, मर्चेंट बैंकर समान सार्वजनिक रूप से लिस्टेड कंपनियों के प्रमुख रेश्यो की तुलना करते हैं, ताकि यह समझा जा सके कि निवेशक उन कंपनियों के लिए कितनी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं।

यह विधि कंपनी के प्राइस-टू-अर्निंग्स (P/E) रेश्यो, Earnings Per Share (EPS), और कैश फ्लो जैसे कारकों को भी ध्यान में रखती है। इन फैक्टर्स के एनालिसिस से कंपनी के शेयर की सटीक वैल्यूएशन की जाती है। यह तरीका मुख्य रूप से इंडस्ट्री के अन्य कंपनियों के प्रदर्शन का उपयोग करता है और उन पर आधारित वैल्यूएशन निकालता है।

एब्सोल्यूट वैल्यूएशन विधि

एब्सोल्यूट वैल्यूएशन विधि कंपनी के भविष्य के कैश फ्लो को ध्यान में रखकर उसकी वर्तमान वैल्यू निर्धारित करती है। यह विधि पूरी तरह से स्टैंडअलोन मोड में की जाती है, जिसका मतलब है कि यह केवल कंपनी की विशेषताओं पर केंद्रित होती है और उसी क्षेत्र की अन्य कंपनियों की विशेषताओं या वैल्यू की तुलना नहीं करती है।

एब्सोल्यूट वैल्यूएशन कंपनी की आंतरिक वैल्यू (Intrinsic Value) की गणितीय गणना में मदद करती है। यह कुछ अनुमानों पर आधारित होती है, जैसे:

  • भविष्य के कैश फ्लो का अनुमान लगाना
  • उन्हें डिस्काउंट करना ताकि कंपनी की वर्तमान वैल्यू तय की जा सके।

प्रोजेक्टेड कैश फ्लो में प्रॉफिट, फ्री कैश फ्लो, और डिविडेंड इनकम शामिल हो सकते हैं। यह तरीका पैसे के समय मूल्य (Time Value of Money) पर निर्भर करता है।

इकोनॉमिक वैल्यूएशन विधि

इकोनॉमिक वैल्यूएशन विधि एक पूरी तरह से गणितीय और सूत्र-आधारित प्रक्रिया है, जिसका उपयोग कंपनी की वैल्यू निर्धारित करने के लिए किया जाता है। इसमें कंपनी के कर्ज (Debt), मार्केट कैपिटलाइजेशन, इनकम, संपत्तियों (Assets) और अन्य आर्थिक कारकों को शामिल किया जाता है।

इस विधि में, रिलेटिव और एब्सोल्यूट वैल्यूएशन विधियों की तरह तुलना या अनुमानों का उपयोग नहीं किया जाता। यह पूरी तरह से डेटा और गणितीय विश्लेषण पर आधारित होती है।

इकोनॉमिक वैल्यूएशन के लिए आईपीओ वैल्यूएशन सूत्र

कंपनी का एंटरप्राइज वैल्यू इस प्रकार निकाला जाता है: Enterprise Value + Cash and Cash Equivalent – Value of Debt and Other Liabilities

इस विधि के माध्यम से कंपनी की सटीक आर्थिक स्थिति और वास्तविक मूल्य को मापा जा सकता है। यह विशेष रूप से उन निवेशकों के लिए उपयोगी है जो डेटा-आधारित निर्णय लेना पसंद करते हैं।

भारत में आईपीओ का वैल्यूएशन

भारत में आईपीओ का वैल्यूएशन योग्य मर्चेंट बैंकर द्वारा किया जाता है। मर्चेंट बैंकर कंपनी की हर छोटी-बड़ी जानकारी को रिव्यू और एनालाइज करते हैं। इसमें शामिल हैं:

  • कंपनी के आंतरिक व्यापार मीट्रिक्स (Internal Business Metrics),
  • Key Performance Indicators
  • पिछली फाइनेंसिंग
  • बाजार की स्थिति
  • अन्य कंपनियों का डेटा

ये सभी जानकारियाँ मर्चेंट बैंकर को कंपनी के लिए सबसे उचित वैल्यूएशन विधि तय करने में मदद करती हैं। मर्चेंट बैंकर की जिम्मेदारी होती है कि डेटा की पूरी समीक्षा की जाए और आईपीओ की प्राइसिंग से जुड़ी सभी जानकारी “बेसिस फॉर ऑफर प्राइस/इश्यू प्राइस” नामक सेक्शन में ऑफर डॉक्युमेंट्स में खुलासा की जाए।

इसके बाद, सेबी (SEBI) इन जानकारियों का एनालाइज करता है और यदि कोई सवाल होते हैं, तो वह अपनी राय जारी कर सकता है या आईपीओ को लागू करने की मंजूरी दे सकता है।

आईपीओ वैल्यूएशन का महत्व

आईपीओ वैल्यूएशन किसी भी सार्वजनिक पेशकश की सफलता की नींव है। सही तरीके से की गई वैल्यूएशन:

  • निवेशकों को आकर्षित करती है: यह कीमत को निवेशकों के लिए किफायती और कंपनी के लिए लाभदायक बनाती है।
  • बाजार में छवि बनाती है: कंपनी की ग्रोथ और बाजार में उसके स्थान का संकेत देती है।
  • फंड रेजिंग को ऑप्टिमाइज़ करती है: न तो कीमत इतनी ज्यादा हो कि निवेशक दूर हो जाएं और न ही इतनी कम कि कंपनी undervalued हो जाए।