भारत में आईपीओ प्रक्रिया

भारत में आईपीओ प्रक्रिया तहत कोई प्राइवेट कंपनी पहली बार अपने शेयर आम जनता को बेचती है और इस तरह से सार्वजनिक हो जाती है। इसके माध्यम से कंपनी को बड़े स्तर पर कैपिटल जुटाने का मौका मिलता है, जिसका उपयोग वह अपने विकास, विस्तार, या नए प्रोजेक्ट्स में निवेश के लिए करती है। आईपीओ में निवेश करना भी निवेशकों के लिए आकर्षक अवसर होता है, क्योंकि उन्हें तेजी से बढ़ने वाली कंपनियों में शुरुआती हिस्सेदारी खरीदने का मौका मिलता है।

लेकिन, आईपीओ प्रक्रिया कठिन होती है और इसमें कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है, जैसे कि सेबी (SEBI) से मंजूरी लेना, बैंकरों को सेलेक्ट करना, शेयर प्राइस का निर्धारण करना, और अंततः स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टिंग होना। इस लेख में, हम आईपीओ प्रक्रिया के हर चरण को विस्तार से समझेंगे ताकि नए और अनुभवी निवेशकों को इस प्रक्रिया की पूरी जानकारी मिल सके।

भारत में आईपीओ प्रक्रिया

भारत में आईपीओ प्रक्रिया (IPO Process) इस प्रकार है:

मर्चेंट बैंकर (लीड मैनेजर) की नियुक्ति

कंपनी आईपीओ प्रक्रिया में सहायता के लिए एक मर्चेंट बैंकर (लीड मैनेजर) नियुक्त करती है, जो शुरू से लेकर लिस्टिंग के बाद तक कंपनी का मार्गदर्शन करता है। मर्चेंट बैंकर पूरी आईपीओ प्रक्रिया का संचालन करता है और इसमें शामिल सभी पक्षों के साथ समन्वय करता है। कंपनी और मर्चेंट बैंकर ड्यू डिलिजेंस करते हैं और ड्राफ्ट प्रॉस्पेक्टस (DRHP) तैयार करते हैं।

मर्चेंट बैंकर एक सेबी-रजिस्टर्ड वित्तीय संस्था होती है, जो कंपनियों को फंड जुटाने, एडवाइजरी सर्विसेज देने और अंडरराइटर के रूप में काम करने जैसी वित्तीय सेवाएं प्रदान करती है।

  • एक कंपनी एक या एक से अधिक मर्चेंट बैंकर नियुक्त कर सकती है। बड़े आईपीओ के लिए, कई लीड मैनेजर होना आम बात है।
  • अधिकांश बैंकों और बड़े गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (NBFC) को मर्चेंट बैंकर के रूप में लाइसेंस प्राप्त है।

सेबी (SEBI) से DRHP अप्रूवल

DRHP (ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस) डॉक्यूमेंट को सेबी के पास रिव्यू के लिए भेजा जाता है। इस प्रक्रिया में 2 से 4 महीने का समय लग सकता है। सेबी DRHP में दी गई जानकारी को रिव्यू करता है और आवश्यक अप्रूवल जारी करता है।

SME IPO के लिए सेबी से अप्रूवल की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए स्टॉक एक्सचेंज से मंजूरी लेनी होती है।

DRHP में आमतौर पर निम्नलिखित जानकारी शामिल होती हैं:

  • फाइनेंशियल स्टेटमेंट का विवरण तथा सारांश
  • बिजनेस और मार्केट की जानकारी
  • रिस्क फैक्टर
  • आईपीओ का उद्देश्य
  • आईपीओ से जुटाई गई राशि का उपयोग

SEBI DRHP का रिव्यू करती है ताकि निवेशकों के हितों की रक्षा हो सके।

एक्सचेंज में आईपीओ आवेदन

मर्चेंट बैंकर आईपीओ की एप्लीकेशन और DRHP डॉक्यूमेंट को एक्सचेंज में मंजूरी के लिए भेजते हैं। एक्सचेंज आईपीओ एप्लीकेशन की जांच के बाद कंपनी को इन-प्रिंसिपल मंजूरी प्रदान करता है।

प्राइसिंग का निर्धारण

कंपनी और मर्चेंट बैंक आईपीओ की प्राइसिंग का निर्धारण का तरीका तय करते हैं: फिक्स्ड-प्राइस इशू या बुक-बिल्डिंग इशू।

विस्तार से जानने के लिए यह लेख पढ़े: कंपनी IPO प्राइसिंग या कीमत कैसे तय करती है?

RHP का प्रस्तुतिकरण

रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (RHP) तैयार किया जाता है और इसे एक्सचेंज में प्रस्तुत किया जाता है। RHP, DRHP का अपडेटेड वर्जन होता है। इसमें कंपनी की लेटेस्ट वित्तीय जानकारी होती है और आईपीओ के समय और प्राइसिंग निर्धारण के विवरण जैसी अतिरिक्त जानकारी भी होती है, जिससे निवेशक बेहतर निर्णय ले सकें।

रोड शो और मार्केटिंग

PR और विज्ञापन एजेंसी के साथ मिलकर मर्चेंट बैंकर आईपीओ की मार्केटिंग करते हैं, जिसे “आईपीओ रोड शो” कहा जाता है। इसमें कंपनी के प्रमोटर्स के साथ विभिन्न शहरों में इन्वेस्टर्स की बैठकें आयोजित की जाती हैं। इसके अलावा, पत्रकारों, विश्लेषकों और अन्य मीडिया प्रतिनिधियों के साथ भी बैठकें की जाती हैं।

एंकर निवेशकों के लिए आईपीओ खुलना

उसके बाद आईपीओ एंकर निवेशकों के लिए खोला जाता है (यदि कोई हो)। एंकर निवेशक एक योग्य संस्थागत खरीदार (QIB) होता है, जो एंकर निवेशक सेक्शन के तहत आईपीओ में आवेदन करता है और कम से कम ₹10 करोड़ की बोली लगाता है। कंपनी पब्लिक इशू खुलने से एक दिन पहले एंकर निवेशकों को शेयर आवंटित करती है।

पब्लिक के लिए आईपीओ खुलना

आईपीओ सार्वजनिक निवेशकों के लिए खुलता है ताकि वे आईपीओ में उपलब्ध शेयरों के लिए बोली लगा सकें। आईपीओ न्यूनतम तीन दिन और अधिकतम दस दिन तक खुला रह सकता है। इस दौरान, निवेशक उपलब्ध शेयरों के लिए अपनी बोलियाँ लगाते हैं। हालांकि, बोलियाँ लगाने से शेयर मिलना सुनिश्चित नहीं होता है, क्योंकि अधिकतर मामलों में शेयरों का आवंटन लॉटरी के माध्यम से होता है।

निवेशक अपने ब्रोकर या बैंक के माध्यम से आईपीओ आवेदन को स्टॉक एक्सचेंज के आईपीओ प्लेटफॉर्म पर जमा करते हैं और उन्हें एक यूनिक आईपीओ आवेदन नंबर प्राप्त होता है।

आईपीओ शेयरों का आवंटन

सार्वजनिक इशू बंद होने के बाद, एक्सचेंज एप्लीकेशन डेटा को आईपीओ रजिस्ट्रार के पास भेजता है, जो आवंटन की प्रक्रिया को संभालता है।

  • एक्सचेंज बैंक को आईपीओ एप्लीकेशन फ़ाइल भेजता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बैंक खाता और डीमैट खाता उसी व्यक्ति का है जिसने आवेदन किया है।
  • बैंक खाते की जानकारी कन्फर्म करते हैं।
  • इसके बाद, रजिस्ट्रार लॉटरी या प्रो-राटा आधार पर आवेदकों को शेयर आवंटित करता है।
  • निवेशकों के खाते से राशि काट ली जाती है और शेयर उनके डीमैट अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं।

आईपीओ लिस्टिंग तारीख की घोषणा

कंपनी लिस्टिंग डॉक्यूमेंट्स को स्टॉक एक्सचेंज में जमा करती है। कंपनी डिपॉजिटरी से क्रेडिट कन्फर्मेशन प्राप्त करती है, जिससे सुनिश्चित होता है कि शेयर अलॉटी के खाते में ट्रांसफर हो चुके हैं। इसके बाद, स्टॉक एक्सचेंज अगले दिन मार्केट में एक लिस्टिंग सर्कुलर जारी करता है, जिसमें फाइनल प्राइस, ISIN, कोड और प्रतीक की जानकारी होती है।

आईपीओ शेयरों की लिस्टिंग

आईपीओ शेयरों की ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज में दो चरणों में शुरू होती है:

प्री-ओपन सेशन

यह सेशन आईपीओ शेयरों के पहले दिन के लिए एक विशेष ट्रेडिंग सेशन होता है। प्री-ओपन सेशन 45 मिनट तक चलता है (सुबह 9:00 बजे से 9:45 बजे तक), जिसमें ऑर्डर दर्ज, संशोधित और रद्द किए जा सकते हैं।

सुबह 9:45 बजे से 9:55 बजे तक, पहले 45 मिनट में लगाए गए ऑर्डर मिलान किए जाते हैं, आईपीओ का ओपनिंग प्राइस तय किया जाता है और ट्रेडर्स को ट्रेडिंग कन्फर्मेशन भेजा जाता है।

ट्रेडिंग की शुरुआत

लिस्टिंग के दिन 10:00 बजे सामान्य ट्रेडिंग शुरू होती है। इस समय, कोई भी बाजार में आईपीओ के शेयर खरीद या बेच सकता है।

पोस्ट-लिस्टिंग डॉक्यूमेंट्स

लिस्टिंग के बाद कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज में कुछ डॉक्युमेंट जमा करने होते हैं, जिनमें बोर्ड मीटिंग के निमंत्रण, वार्षिक रिपोर्ट, शेयरहोल्डिंग का पेट्रन, ऑडिट रिपोर्ट, कॉर्पोरेट गवर्नेंस रिपोर्ट और ऑडिट रिपोर्ट शामिल हैं।

आईपीओ प्रक्रिया में प्रमुख संस्थानो की भूमिका

आईपीओ प्रक्रिया में कई प्रमुख संस्थान शामिल होती हैं:

  • SEBI: मुख्य नियामक संस्था जो आईपीओ की पारदर्शिता सुनिश्चित करती है।
  • स्टॉक एक्सचेंज (BSE, NSE): शेयरों की लिस्टिंग और ट्रेडिंग को सरल और आसान बनाते हैं।
  • मर्चेंट बैंकर/इन्वेस्टमेंट बैंकर/अंडरराइटर: आईपीओ प्रक्रिया को मैनेज करते हैं और निवेशकों में रुचि उत्पन्न करते हैं।
  • ब्रोकर और वित्तीय सलाहकार: निवेशकों को आईपीओ में मार्गदर्शन और बोली लगाने में सहायता करते हैं।

ये संस्थान यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करते हैं कि कंपनी की सार्वजनिक इकाई (public entity) बनने की यात्रा सफल हो और रेगुलेटरी स्टैंडर्ड्स अनुरूप हो।

मेनबोर्ड आईपीओ और एसएमई आईपीओ के प्रक्रिया की तुलना

मेनबोर्ड और एसएमई आईपीओ की प्रक्रिया लगभग एक जैसी होती है, लेकिन कुछ छोटे अंतर होते हैं, जो इस प्रकार हैं:

  • दस्तावेज़ों का रिव्यू: मेनबोर्ड आईपीओ में डॉक्यूमेंट का रिव्यू सेबी (SEBI) द्वारा किया जाता है, जबकि एसएमई आईपीओ में यह काम स्टॉक एक्सचेंज द्वारा किया जाता है।
  • मार्केट मेकर की नियुक्ति: एसएमई आईपीओ में मार्केट मेकर की नियुक्ति अनिवार्य होती है। मार्केट मेकर को इशूअर कंपनी और मर्चेंट बैंकर द्वारा आपसी सहमति से नियुक्त किया जाता है।
  • फिक्स्ड प्राइस इशू में RHP डॉक्युमेंट की फाइलिंग: फिक्स्ड प्राइस एसएमई आईपीओ में, इशू के खुलने से पहले RHP डॉक्यूमेंट को रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (RoC) के पास जमा करना होता है, जबकि मेनबोर्ड आईपीओ (बुक बिल्डिंग इशू) में RHP डॉक्यूमेंट को इशू बंद होने के बाद फाइल किया जा सकता है।

भारत में आईपीओ प्रक्रिया की समयावधि

भारत में आईपीओ प्रक्रिया की कुल समयावधि 3 महीने से लेकर एक वर्ष तक हो सकती है, जो कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि आईपीओ का प्रकार, कंपनी का आकार, बाजार की स्थिति आदि।

आईपीओ प्रकार के अनुसार समय सीमा (अनुमानित)

प्रकारअवधि
मेनबोर्ड आईपीओ6 से 12 महीने
एसएमई आईपीओ3 से 4 महीने

निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण बातें

आईपीओ में निवेश करने वाले संभावित निवेशकों के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखना आवश्यक है:

  • कंपनी का बिजनेस मॉडल और वित्तीय स्थिति: कंपनी के रेवेन्यू मॉडल, बाजार स्थिति और वृद्धि की संभावनाओं का मूल्यांकन करें।
  • उद्योग का दृष्टिकोण: उद्योग के विकास की संभावनाओं का विश्लेषण करें।
  • वैल्यूएशन और प्राइसिंग: आईपीओ प्राइस की तुलना बाजार की अन्य कंपनियों से करें।
  • रिस्क फैक्टर: आईपीओ में शामिल जोखिमों को समझना महत्वपूर्ण है।

इन पहलुओं पर विचार करके, निवेशक सूचित निर्णय ले सकते हैं और आईपीओ निवेश से जुड़े रिस्क को मैनेज कर सकते हैं।


संबंधित लेख पढ़े: