जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर आम जनता को बेचती है, तो इसे IPO यानी इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग कहा जाता है। इस प्रक्रिया में कंपनी को यह तय करना होता है कि शेयर की कीमत क्या होगी?
निवेशकों को आकर्षित करने के लिए सही प्राइसिंग महत्वपूर्ण है। भारत में IPO प्राइसिंग के दो मुख्य तरीके होते हैं: फिक्स्ड प्राइस और बुक बिल्डिंग। आइए, इन दोनों तरीकों को आसान भाषा में समझें।
IPO प्राइसिंग क्या होती है?
IPO प्राइसिंग वह प्रक्रिया है जिसमें कंपनी यह तय करती है कि शेयर की शुरुआती कीमत क्या होगी। यह मूल्य निर्धारित करता है कि कंपनी कितनी कैपिटल जुटाना चाहती है और इससे निवेशकों को कंपनी की विकास क्षमता का अंदाजा होता है।
सही कीमत तय करना जरूरी होता है ताकि कंपनी को अच्छे निवेशक मिल सकें और निवेशकों को भी उनके निवेश का सही मूल्य मिल सके।
IPO प्राइसिंग के प्रकार या विधि
IPO की कीमत दो तरीकों में से एक द्वारा तय की जाती है – बुक बिल्डिंग या फिक्स्ड प्राइस। IPO लाने वाली कंपनी अपनी पसंद के अनुसार इनमें से कोई भी तरीका चुन सकती है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानते है:
बुक बिल्डिंग मेथड
बुक-बिल्डिंग तरीके में IPO की कीमत पहले से तय नहीं होती है। कंपनी एक प्राइस रेंज (जैसे: 75 से 80 रुपये प्रति शेयर) की घोषणा करती है, जिसके अंदर IPO के लिए बोलियाँ स्वीकार की जाती हैं। बिडिंग की अवधि के अंत में, विभिन्न कीमतों पर शेयरों की मांग के आधार पर अंतिम IPO कीमत तय की जाती है।
बुक बिल्डिंग मेथड के फायदे
- कीमत का सही पता लगाने का एक प्रभावी तरीका।
- कंपनी शेयर की मांग के आधार पर अपनी विश्वसनीयता का आकलन कर सकती है।
- शेयर की मांग के अनुसार कीमत तय होती है, जिसे कंपनी के मैनेजमेंट द्वारा निर्धारित नहीं किया जाता है।
बुक बिल्डिंग मेथड के नुकसान
- फिक्स्ड प्राइस IPO की तुलना में महंगा होता है।
- शेयर जारी करने की प्रक्रिया लंबी होती है, क्योंकि बिडिंग प्रक्रिया के अंत में कीमत तय की जाती है।
- यह बड़ी मात्रा में शेयर जारी करने के लिए ही उपयुक्त होता है।
फिक्स्ड प्राइस मेथड
फिक्स्ड प्राइस मेथड में शेयर की कीमत पहले से तय होती है (जैसे 50 रुपये प्रति शेयर), जो IPO सब्सक्रिप्शन के लिए खुलने से पहले निर्धारित की जाती है। छोटे इश्यू साइज के कारण SME कंपनियाँ बुक-बिल्डिंग की बजाय फिक्स्ड प्राइस इश्यू को प्राथमिकता देती हैं।
फिक्स्ड प्राइस मेथड की विशेषताएँ
- फिक्स्ड प्राइस IPO का प्रॉस्पेक्टस (प्रस्ताव पत्र) IPO की कीमत और इसे तय करने के आधार से संबंधित सभी जानकारी प्रदान करता है।
- इश्यू के लिए सब्सक्रिप्शन खुलने से पहले जारीकर्ता कंपनी को फिक्स्ड प्राइस IPO का प्रॉस्पेक्टस रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के पास रजिस्टर कराना आवश्यक है।
- कुल नेट ऑफर का कम से कम 50% हिस्सा रिटेल निवेशकों के लिए उपलब्ध कराना जरूरी है।
- फिक्स्ड प्राइस इश्यू को 3-10 बिजनेस दिनों के लिए खुला रखना चाहिए।
बुक बिल्डिंग vs फिक्स्ड प्राइस आईपीओ
आईपीओ लाने वाली कंपनी अपनी पसंद और इश्यू साइज के आधार पर IPO के किसी एक तरीके का चयन करती है। दोनो तरीको में मुख्य अंतर इस प्रकार हैं:
बुक बिल्डिंग IPO | फिक्स्ड प्राइस IPO |
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बुक-बिल्ट इश्यू में प्राइस रेंज होती है। | फिक्स्ड प्राइस IPO में एक तय कीमत होती है। |
बिडिंग प्रक्रिया के अंत में ऑफर प्राइस तय की जाती है। | ऑफर प्राइस पहले से तय होती है। |
SEBI द्वारा 1995 में उचित प्राइसिंग के लिए शुरू किया गया था। | IPO इश्यू का पारंपरिक पुराना तरीका। |
इश्यू के खुले होने पर प्राइस रेंज में बदलाव किया जा सकता है। | इश्यू के खुलने के बाद ऑफर प्राइस में बदलाव नहीं किया जा सकता है। |
उचित प्राइसिंग की संभावना अधिक होती है क्योंकि कीमत मांग और आपूर्ति के आधार पर तय होती है। | कीमत अधिक या कम आंकी जा सकती है। |
निवेशक किसी भी कीमत पर बोली लगा सकते हैं जो प्राइस रेंज में हो। | निवेशक केवल तय कीमत पर ही सब्सक्राइब कर सकते हैं। |
आमतौर पर मेनबोर्ड IPO कंपनियों द्वारा अपनाया जाता है। | आमतौर पर SME IPO कंपनियों द्वारा अपनाया जाता है। |
लोकप्रिय तरीका | कम उपयोग होने वाला तरीका |
बुक-बिल्डिंग इश्यू की मांग रोज़ाना देखी जा सकती है। | फिक्स्ड प्राइस IPO की मांग सब्सक्रिप्शन अवधि के अंत में पता चलती है। |